क्या कलाकार की सामाजिक जिम्मेदारी का कोई सम्बन्ध उसकी कला से होता है ?क्या कलाकार के कृत्यों को उसकी कला के चश्मे से देखना चाहिए ?यहाँ कलाकार से मेरा आशय थोड़ा व्यापक संदर्भो में है । साहित्य ,सिनेमा आदि कई छेत्रों को मै कला के दायरे में ले रहा हूँ। उदाहरण के लिए ,हम मान लेते हैं की स्त्री -प्रश्नों पर लिखने वाला कोई साहित्यकार है जिसने बड़ी संवेदनशीलता से स्त्री विषयक प्रश्नों को पाठको के सामने उठाया है। अब यदि यह साहित्यकार किसी दिन बलात्कार का दोषी पाया जाता है। तो ?उसके इस कृत्य को हम किस तरह देखेंगे? क्या हम उसके इस कृत्य का मूल्यांकन उसकी कला से स्वतंत्र होकर कर पाएंगे ?आम तौर पर नही। हमारा आम नजरिया कलाकार से बड़ी भूमिका और जिम्मेदारी की अपेछा रखता है । हम सोचते हैं की ऐसे लोगों को तो और कड़ी सजा होनी चाहिए ।हम उसे एक ऐसे शिछक के रूप में देखते हैं जो वहीँ गलतियाँ करता है जिसके परिष्कार की अपेछा उससे की जाती है । पर क्या कला इतनी एकांगी होती है ?क्या कला सिर्फ हमारे विचारों को प्रतिबिंबित करती है ? क्या किसी सृजन में प्रतिभा ,परिस्थिति ,और तत्कालीन समय का कोई योगदान नही होता ?इससे भी बड़ा सवाल यह है की क्या कला किसी की बपौती होती है ?शायद नही । कला तो सभ्यता की सम्पति होती है । तो फिर कलाकार के बहाने कला को खारिज करने का हमें क्या अधिकार है? अपराध की गुरुता को बढाकर देखते हीं हम अंतर्मन में अपराधी की कला को एक ढोंग की श्रेणी में रख देते हैं । पर मै फिर कहूँगा की कला किसी की बपौती नहीं ,और रचना प्रक्रिया विचारों से स्वतंत्र भी हो सकती है ।यह बिल्कुल संभव है की किसी तथाकथित अनैतिक साहित्यकार का साहित्य मूल्यों के नए मानदंड स्थापित करे । कलाकार और मूल्य ,दोनों समय के सापेछ हैं,पर कला शाश्वत है। मै इस प्रश्न के सहारे शायद सामाजिक नैतिकता को कटघरे में खड़ा कर रहा हूँ पर समाज की और प्रकारांतर से मेरी भी विचार प्रक्रिया पर बहस की गुंजाईश बने तो मुझे कोई हर्ज नही दीखता । दूसरी बात यह है की इस प्रश्न के सहारे मै कोई फतवा नही दे रहा हूँ बल्कि बहस के कुछ नए बिन्दु ,अगर बन सकें तो, बनाने की कोशिश कर रहा हं ।
एक जटिल विषय को आसन तरीके से प्रस्तुत करने की मैंने पुरी कोशिश की है पर शंकाओं के समाधान के लिए मै हमेशा प्रस्तुत हूँ ।
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विचारणीय पोस्ट है।
ReplyDeleteगहरा विचार...
ReplyDeleteहाँ, पर उस कला को देखने वाले की नजर भी पतित हो सकती है।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteकला निश्चित ही कलाकार की नैतिकता से परे होती है ...परन्तु व्यक्तिगत नैतिकता और सामाजिक नैतिकता में भी अंतर होता है ..एक कलाकार अपने व्यक्तिगत जीवन में कुछ भी करे परन्तु सामाजिक रूप से उसे नैतिक होना ही पड़ता है, अन्यथा उसकी कला प्रश्नों के घेरे में आ जाती है ...वैसे मैं भी यह मानती हूँ की कला का स्वतंत्र अस्तित्व होता है ...
ReplyDeleteहुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ...........
ReplyDeleteइधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)
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