Tuesday, April 14, 2009

लोकतंत्र ? के महापर्व में आहुति

उत्तर प्रदेश के जौनपुर लोकसभा सीट से इंडियन जस्टिस पार्टी के उम्मीदवार बहादुर सोनकर को घर से अगवा कर उनकी हत्या कर दी गई और शव को उनके घर के पास स्थित एक पेड़ पर लटका दिया गया। मै स्तब्ध हूँ। विचारो का एक बवंडर सर में घूम रहा है और मै कोई एक सूत्र पकड़ने में असफल हो रहा हूँ जिसके सहारे इस घटना की व्याख्या कर सकूँ। हत्या का आरोपी एक सवर्ण बाहुबली है जो एक दलित महारानी का अनुचर और उसी छेत्र से उनका उम्मीदवार भी है। तो क्या दलित सोनकर इस बाहुबली के महारानी से अनुग्रह स्वरुप प्राप्त दलित वोट बैंक में सेंध लगा रहे थे ? क्या महापर्व की कौशल परिच्छा में सोनकर का प्रवेश कर्ण की तरह अनाधिकृत और अवांछित था ?
सत्ता की बन्दूक किराये पर ले कर गुंडे हमारी आस्था पर डाके डाल रहे हैं । लोकतंत्र के साथ बिस्तर में अय्याशियाँ कर रहे हैं। पर यह लोकतंत्र के साथ बलात्कार नही है । लोकतंत्र शायद एक वेश्या हो गई है जो रोज ब रोज बिकने को मजबूर है। व्यवस्था ने मेरे लिए सारे दरवाजे बंद कर दिए है और कोई है जो मेरे वोट के बदले सत्ता पा कर मेरे लिए चोर दरवाजे खोलने का वादा कर रहा है । मै उसे वोट न दूँ ? क्या मतदान के वक्त मेरे चयन की स्वतंत्रता एक अदृस्य आदेश में नही बदल गई है ? मेरे मित्र कह रहे हैं की वोट दे कर अपने चयन की असफलता में तो भागी बनिए । पर यथास्थिति के खिलाफ प्रतिक्रिया दे कर और उसकी ढेर सारी कीमत चुका कर जो लोग कंधे पर बन्दूक लटकाए वोट बहिष्कार का नारा दे रहे हैं उन्हें वोट डालने को कहने में मै हिचक रहा हूँ ।
महापर्व पर विचार ,सुझाव और प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।

3 comments:

  1. inhin sawalon ke jabab me hee sab samaya hai .jameenee hakeekat yahee hai .

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  2. दोस्त....!!इन शब्दों में कहना तो नहीं चाहता मगर कहे बिना रह भी नहीं पाउँगा.....कि बहुत सारे चूतियों में हमें किन्ही कम चूतिये का चुनाव करना होता है....और चुने जाते ही वह आदमी पहले वाले भी ज्यादा चुटिया हो जाता है.....मैं बता चूका हूँ कि इन शब्दों का उपयोग मैं नहीं करना चाहता .....मगर इससे भी ज्यादा गंदे शब्द इन लोगों के लिए कम मालूम पड़ते हैं....!!

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  3. बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !

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